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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021,जीत किसकी?

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By: रंजना मिश्रा

Apna Lakshya News: देश भर की नजरें पश्चिम बंगाल के चुनाव और उसके आने वाले नतीजों पर टिकी हैं। पश्चिम बंगाल विधानसभा की 294 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैैं, जिसमें किसी भी पार्टी या गठबंधन को जीत हासिल करने के लिए 148 सीटों की जरूरत है। पश्चिम बंगाल में 7,32,94,980 रजिस्टर्ड वोटर हैं। त्योहारों की वजह से और कोविड-19 प्रोटोकॉल के मद्देनजर बढ़ाए गए पोलिंग बूथों के चलते चुनाव 8 चरणों में कराए जाने का फैसला लिया गया है। मतदान के पहले चरण में 30 विधानसभा क्षेत्रों के लिए 27 मार्च, दूसरे चरण में 30 विधानसभा क्षेत्रों के लिए 1 अप्रैल, तीसरे चरण में 31 विधानसभा क्षेत्रों के लिए 6 अप्रैल, चौथे चरण में 44 विधानसभा क्षेत्रों के लिए 10 अप्रैल, पांचवे चरण में 45 विधानसभा क्षेत्रों के लिए 17 अप्रैल, छठे चरण में 43 विधानसभा क्षेत्रों के लिए 22 अप्रैल, सातवें चरण में 36 विधानसभा क्षेत्रों के लिए 26 अप्रैल और आठवें चरण में 35 विधानसभा क्षेत्रों के लिए 29 अप्रैल को मतदान होगा। मतदान संपन्न होने के बाद नतीजों की घोषणा रविवार 2 मई 2021 को की जाएगी।


2016 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने 211 सीटें जीत कर दो तिहाई बहुमत हासिल किया था, वहीं बीजेपी को महज 3 सीटें मिली थीं, लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन 77 सीटें ही जीत सका था, हालांकि कांग्रेस ने 44 सीटें जीतकर अपने सहयोगी लेफ्ट दलों से बेहतर प्रदर्शन किया था। 2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने 42 लोकसभा सीटों में से करीब आधी यानी 18 सीटें जीतकर पश्चिम बंगाल में बड़ी कामयाबी हासिल की थी और टीएमसी ने 22 सीटें जीती थीं, जबकि लेफ्ट एक भी सीट जीतने में नाकामयाब रहा था।


2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कई बड़े चेहरे अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इस चुनाव में जिन विधानसभा सीटों पर सबकी नजरें रहेंगी, उनमें नंदीग्राम सीट सबसे प्रमुख है, जहां ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी के बीच कांटे की टक्कर है, साथ ही जिन सीटों से बीजेपी के पांच सांसद लड़ रहे हैं वो भी नजर में रहेंगी। इन सीटों में टालीगंज, चुंचुड़ा, दिनहाटा, तारकेश्वर, शांतिपुर विधानसभा सीटें शामिल हैं। इसके अलावा कृष्णानगर उत्तर सीट, जहां से पूर्व केंद्रीय मंत्री मुकुल रॉय चुनाव लड़ रहे हैं व जमुरिया सीट, जहां से आईसी घोष चुनाव लड़ रही हैं, भी प्रमुख हैं।


स्वतंत्रता के बाद से यदि पश्चिम बंगाल का चुनावी इतिहास देखा जाए, तो यह देश के बाकी हिस्सों से अलग था। एक ओर जहां अन्य राज्य चाहे वह पंजाब हो या उत्तर प्रदेश या कर्नाटक सभी जगह जातिगत राजनीति प्रमुख रूप से देखी जाती थी, किंतु पश्चिम बंगाल में राजनीति कास्ट यानी जाति की बजाय क्लास यानी वर्ग पर आधारित होती थी। किंतु समय के साथ पश्चिम बंगाल की राजनीति क्लास की जगह कास्ट की तरफ शिफ्ट हो गई है।


जब पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था, तब भी समाज अमीर-गरीब में बंटा हुआ था, वहीं ममता बनर्जी का राजनीति में उत्थान नंदीग्राम के अमीरी-गरीबी के आंदोलन की नींव पर ही हुआ था। जब बीजेपी ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में कदम रखा और चुनाव के लिए काम करना शुरू किया तो उसने सबसे पहले समाज में उपेक्षा झेल रहे उस वर्ग को मजबूत किया, जो पिछड़ा और शोषित था और उनका भरोसा जीतना शुरू किया। बीजेपी ने सबसे पहले पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार द्वारा लगातार नजरअंदाज हुए ओबीसी तथा अन्य पिछड़े दलों को मुख्यधारा से जोड़ना शुरू किया। बीजेपी की इसी नीति के चलते, पहले 2018 के पंचायत चुनाव और फिर 2019 के आम चुनाव में, कभी टीएमसी के वोट बैंक रहे एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय का बीजेपी को भारी समर्थन प्राप्त हुआ और इसी कारण से अब बीजेपी ने टीएमसी के कुछ गढ़ों में भी सेंध लगाई है।

इन वोटों के दम पर ही बीजेपी ने जंगलमहल, उत्तर 24 परगना और नादिया जिलों में टीएमसी को हराने में सफलता पाई थी। अब टीएमसी भी अपने घोषणा पत्र में अन्य पिछड़ी जातियों के रूप में महिष्य, तामुल, साह और तेली के लिए आरक्षण शामिल करने का निर्णय कर उन्हें लुभाने की भरपूर कोशिश कर रही है। अभी तक ममता बनर्जी तुष्टीकरण की राजनीति करती रही हैं, उन्होंने मुसलमानों को अपने पक्ष में रखने के लिए महिष्यों को नजरअंदाज किया है। वर्ष 2012 में ममता बनर्जी की सरकार ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग विधेयक पारित किया था, जिसमें ओबीसी आरक्षण में, सिद्दीकी और सईद को छोड़कर, सभी मुस्लिम समुदायों को सूची में ओबीसी ए या ओबीसी बी के रूप में शामिल किया गया था, इससे उन्हें नौकरी मिलनी शुरू हो गई और हिंदू पिछड़ा वर्ग गरीब का गरीब ही रह गया। बीजेपी ने महिष्य समाज की ओबीसी स्टेटस की वर्षों पुरानी मांग को अपने मेनिफेस्टो में शामिल किया है।

महिष्य दक्षिण पूर्व और पश्चिमी मिदनापुर, हावड़ा, हुगली, दक्षिण 24 परगना और पूर्व और पश्चिम बर्धमान सहित दक्षिण बंगाल के कई जिलों में सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण जातिगत समुदाय है। नंदीग्राम के महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र में भी यह प्रमुख जाति है। राज्य में करीब 62 ओबीसी समुदाय हैं। उत्तर बंगाल के राज्यबोंग्सी अपनी अलग पहचान के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं, और इसके सबसे अहम नेताओं में से एक ‘अनंत राजमहाराज’ अब बीजेपी के साथ हैं। ममता बनर्जी की तुष्टीकरण का खामियाजा इन पिछड़ी जातियों को भुगतना पड़ा है, इनके पास न तो आरक्षण था और ना ही राज्य सरकार का समर्थन, इससे पश्चिम बंगाल में न तो इन लोगों को नौकरी के अवसर मिले और ना ही इनका विकास हो पाया।


बीजेपी के चुनाव में प्रमुख प्रतिद्वंदी बन जाने के बाद से हिंदुत्व कार्ड, ध्रुवीकरण और तुष्टीकरण के मुद्दे लोगों की जुबान पर हैं। एक ओर जहां ममता बनर्जी बीजेपी के खिलाफ देश में महंगाई, गैस के बढ़े दाम और पेट्रोल, डीजल के बढ़े दामों को मुद्दा बना रही हैं तो दूसरी ओर बीजेपी व अन्य विपक्षी पार्टियां ममता सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा प्रमुखता से उठा रही हैं। बीजेपी के नेता ‘तोलाबाज भाइपो’ शब्द का इस्तेमाल कर ममता बनर्जी और उनके भतीजे पर हमला बोल रहे हैं और गलत तरीके से धन जमा करने का आरोप लगा रहे हैं। ध्यान देने की बात है कि इस चुनाव में एनआरसी-सीएए वैसा मुद्दा नहीं बना है, जैसी उम्मीद की जा रही थी, बीजेपी ने भी इस मुद्दे को चुनाव में नहीं उठाया है।


ममता दीदी के ‘खेला होबे’ नारे का जवाब प्रधानमंत्री मोदी ने ‘विकास होबे’ का नारा लगा कर दिया है। करीब 3 महीने पहले पश्चिम बंगाल विकास और परिवर्तन के नारों से गूंज रहा था, लेकिन पहले चरण की वोटिंग तक आते-आते नेताओं की जुबान निजी और तीखी टिप्पणियों से तेज हो गई है। सत्ता पक्ष हो या फिर विपक्ष, बंगाल चुनाव के सिंहनाद से ठीक पहले एक दूसरे पर इतने वार हुए हैं कि मर्यादाएं तार-तार हो गई हैं। जनता के बीच नेताओं के इन जुबानी वार-पलटवार का कितना असर होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। हां यह जरूर है कि बीजेपी इस बार मजबूती से ममता दीदी की सियासी जमीन छीनने के लिए मैदान में ताल ठोंक रही है। इस बार बीजेपी के पाले में ममता के खास सिपहसालार रहे शुभेंदु अधिकारी और उनका परिवार भी है। कांथी उत्तर, कांथी दक्षिण, भगवानपुर, खेजुरी, रामनगर, इगरा विधानसभा सीटों पर अधिकारी परिवार का अच्छा खासा दबदबा है। यहां के लोगों के मन में ईवीएम का बटन दबाते समय ममता दीदी के 10 साल बनाम, बीजेपी के सोनार बांग्ला के वादे की जद्दोजहद साफ नजर आएगी। सभी नेताओं ने इस चुनाव में जी-जान की ताकत झोंक दी है। ममता बनर्जी ने चिट्ठी लिखकर सभी विपक्षी दलों को मोदी के खिलाफ एकजुट होने का आवाहन भी किया है। हिंसा को मद्देनजर रखते हुए पोलिंग बूथों पर मतदान के समय सिक्योरिटी के खास इंतजाम रखे गए हैं।

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