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मामला अनुपपुर विकास खंड के चिकित्सा विभाग का
बीते सप्ताह पूर्व कलेक्टर चंद्रमोहन ठाकुर के द्वारा अनूपपुर बीएमओ के ऊपर 10 लाख के थर्मामीटर खरीदी और निर्धारित स्थलों तक उनके न पहुंचने का आरोप लगाकर उन्हें पद से हटाया गया, कलेक्टर के जाने के बाद यह मामला तब चर्चा का विषय बन गया, जब यह बात सामने आई कि बीएमओ कार्यालय को न तो थर्मामीटर खरीदने का अधिकार था और ना ही उसने कभी थर्मामीटर खरीदे ही थे।
अनूपपुर- बीते सप्ताह आपदा प्रबंधन की बैठक के दौरान तत्कालीन कलेक्टर चंद्रमोहन ठाकुर ने अनूपपुर विधायक और पालक मंत्री बिसाहूलाल सिंह तथा जिले के अन्य अधिकारियों के साथ हुई बैठक के दौरान अनूपपुर विकासखंड के चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर आर.के. वर्मा 10 लाख के थर्मामीटर खरीदने और उनका निचले स्तर पर कार्यरत कर्मचारियों में आवंटन न करने का आरोप लगाया था,यह मामला कलेक्टर के बैठक में बयान के बाद काफी सुर्खियों में भी आया था, मीडिया में भी यह मामला काफी उछला था।
उसके कुछ दिनों बाद बिना किसी कारण बताओ नोटिस के विकास खंड चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर आर के वर्मा को हटा दिया गया। कलेक्टर के स्थानांतरण के बाद यह मामला एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है,आरोप है कि कलेक्टर ने किसी अन्य कारण को छुपाते हुए विकास खंड चिकित्सा अधिकारी को पहले से ही पद से हटाने की नियत बनाने के बाद आपदा प्रबंधन की बैठक के दौरान इस मामले को उठाया और मंत्री जी को इस मामले में गुमराह किया गया।
बैठक के बाद यह बातें मीडिया में सामने आई कि विकास खंड चिकित्सा अधिकारी ने 10 लाख के थर्मामीटर खरीदे थे और आवंटन कब किसे किया गया, इसकी जानकारी चिकित्सा अधिकारी के पास नहीं थी, इस कारण उन्हें पद से हटाया गया। जबकि हकीकत यह थी कि महज 64 थर्मामीटर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय के द्वारा उन्हें आवंटित किए गए थे, लेकिन साहब तो बिना रुई व कपास के लठ्ठम लठ्ठ करके चले गए, हकीकत क्या है इस पर जिले के पालक मंत्री स्थानीय विधायक बिसाहूलाल को विचार या जांच करने की आवश्यकता है।
आवंटित हुए थे सिर्फ 64 थर्मामीटर-
अपना लक्ष्य ने जब इस मामले की पड़ताल की तो यह बात सामने आई कि अनूपपुर ही नहीं बल्कि जिले के अन्य किसी भी विकास खंड चिकित्सा अधिकारी के द्वारा थर्मामीटर की खरीदी नहीं की गई थी, बैठक के दौरान कलेक्टर ने अनूपपुर के विकास खंड चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर आर के वर्मा के साथ ही कोतमा के विकास खंड चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर केएल दीवान पर भी थर्मामीटर की खरीदी और उनके आवंटन को लेकर सवाल खड़े किये थे। पड़ताल के दौरान यह बात सामने आई कि कार्यालय मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के स्टोर से बीती 24 मई को सिर्फ 64 थर्मामीटर अनूपपुर बीएमओ कार्यालय के लिए आवंटित किए गए थे, दूसरी तरफ अनूपपुर व अन्य बीएमओ कार्यालय को थर्मामीटर की खरीदी के लिए कोई भी बजट नहीं दिया गया था, यह बात भी सामने आई कि विकास खंड चिकित्सा अधिकारी कार्यालय द्वारा विकासखंड अंतर्गत कार्यरत 55 स्वास्थ्य कर्मियों को सभी 64 थर्मामीटर आवंटित कर दिए गए थे।
सीएमएचओ कार्यालय ने खरीदे थे थर्मामीटर-
थर्मामीटर खरीदी के मामले में यह बात भी सामने आई कि 10 लाख रुपए के 500 थर्मामीटर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय के द्वारा खरीदे गए थे,200 रूपए प्रति थर्मामीटर की दर से खरीदे गए थर्मामीटर को अनूपपुर मुख्यालय स्थित स्टोर में रखा गया था और आवश्यकता के अनुरूप अनूपपुर चिकित्सा अधिकारी के अलावा कोतमा, जैतहरी, पुष्पराजगढ़ सहित मुख्यालय स्थित जिला चिकित्सालय को आवंटन किया गया था, बैठक में मामले को लेकर कलेक्टर ने सवाल खड़े किए थे, वह मामला सरकारी रिकॉर्ड में सच्चाई से कोसों दूर था।
श्रीवास्तव आज भी आफ रिकॉर्ड सीएमएचओ-
जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था अभी भी पूर्व मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉक्टर डॉ. आर पी श्रीवास्तव के इर्द-गिर्द ही घूम रही है, गौरतलब है कि लगभग एक दशक पहले उमरिया से स्थानांतरित होकर डॉ. श्रीवास्तव ने अनूपपुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी की कमान संभाली थी, उनके सेवानिवृत्त होने के बाद डॉक्टर सोनवानी और वर्तमान में डॉ. एससी राय मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी का कार्यभार देख रहे है। जिसे थर्मामीटरो की खरीदी का मामला कलेक्टर ने आपदा प्रबंधन समिति की बैठक के दौरान उठाया था वह डॉक्टर डॉ. सोनवानी के कार्यकाल के दौरान खरीदे गए थे और उनका आवंटन तब से लेकर अब तक लगातार हो रहा है।
स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सूत्रों पर यकीन करें तो वर्तमान में डॉ. राय भले ही मुख्य चिकित्सा अधिकारी की कुर्सी पर बैठे हैं, लेकिन आज भी डॉ. आरपी श्रीवास्तव जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था और खासकर खरीदी और आवंटन के मामले को सीधे देखते हैं। मैनेजमेंट में माहिर डॉ. श्रीवास्तव सेवानिवृत्त होने के बाद भले ही संविदा चिकित्सक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन कोरोना की पहली लहर से लेकर दूसरी लहर के दौरान डॉ. श्रीवास्तव वार्ड में मरीजों को परामर्श देते कभी नजर नही आए, उनका अधिकांश समय मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय की फाइलों को निपटाने और खासकर बजट को निपटाने में ही बीतता है।
जिले में किस व्यक्ति अथवा कर्मचारी की नियुक्ति किस कार्यालय में करनी है और किसका स्थानांतरण कहां करना है, इन सब पर भी डॉक्टर श्रीवास्तव का पहले से कम दखल नहीं रहता। इतना ही नहीं कलेक्टर चंद्रमोहन ठाकुर के कार्यकाल के दौरान वे भले ही संविदा तौर पर यहां कार्यरत हो, लेकिन उनके पास मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के समकक्ष ही अधिकार रहे हैं,स्वास्थ विभाग से लेकर कलेक्टर कार्यालय तक आने-जाने वाली लगभग सभी फाइलों में उनका हस्ताक्षेप और सहमति के बिना यह कोई कार्य होता नहीं दिख रहा है।