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दबदबा कायम रखने वाली भाजपा को इस सीट पर चुनौति दे पाएगी कमलनाथ की चाल
दमोह में मिली हार के बाद अपनी रणनीति में क्या बदलाव लाएगी शिवराज सरकार
BY: विजया पाठक
दमोह उपचुनाव में भाजपा को मिली हार के बाद अब पूरी पार्टी की नजरे खंडवा लोकसभा सीट पर है जहां उपचुनाव होना प्रस्तावित है। निमाड़ इलाके की यह महत्वपूर्ण सीट पर दोनों ही सक्रिय पार्टी के नेताओं की नजरे है। दोनों ही इन दिनों इस सीट के लिए अपने नेताओं के साथ लगातार मंथन कर दावेदार का नाम फाइनल करने में जुटी हुई हैं। गौरतलब है कि खंडवा सीट से सांसद रहे नंदकुमार चौहान का कुछ महीने पहले निधन हो गया था जिसके बाद से यह सीट रिक्त बनी हुई हैं।
अब जब कोरोना संक्रमण काबू में आया है तो दोनों ही सियासी दल इस सीट पर उपचुनाव करवाने की तैयारी में बैठे है। भाजपा की ओर से इस सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और इंदौर के जनलोकप्रिय नेता कैलाश विजयवर्गीय भी दौड़ में शामिल है। हालांकि उन्होंने अभी चुनाव लड़ने के लिए बहुत ज्यादा इच्छा नहीं जताई। इसके अलावा पूर्व प्रदेश संगठन मंत्री कृष्णमुरारी मोघे भी इस सीट के लिए दावेदार माने जा रहे है।
देखा जाए तो खंडवा के छोटे व्यापारी हो या फिर बड़े, सभी को खरीददारी के लिए इंदौर आना पड़ता है। ऐसे में यदि भाजपा पार्टी इंदौर के किसी राजनेता को खंडवा लोकसभा सीट के लिए दावेदार बनाती है तो निश्चित ही यह पार्टी के लिए एक बेहतर मौका हो सकता है इस सीट को जीतने का। क्योंकि नंदकुमार चौहान जमीन से जुड़े नेता थे और उनकी बात उनके कार्यकर्ता बेहद सुनते और समझते थे। लेकिन उनके जाने के बाद अब भाजपा की तरफ से वहां कोई बड़ा चेहरा नहीं है।
फिलहाल भाजपा की ओर से सीट के उम्मीदवार को लेकर स्थिति बहुत ज्यादा साफ नहीं हो पाई है। वहीं, कांग्रेस पार्टी की 23 जून को होने वाली हाईलेवल मीटिंग में लोकसभा सीट के उम्मीदवार के नाम की घोषणा हो सकती है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस पार्टी की ओर से इस सीट के लिए पूर्व सांसद अरूण यादव दावेदार माने जा रहे है। अगर ऐसा होता है और अरुण यादव कांगेस के दावेदार बनते है तो निश्चित तौर पर यह पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की एक सोची समझी चाल होगी। क्योंकि इसी सूझबूझ के साथ ही कमलनाथ ने भाजपा के हाथों से दमोह विधानसभा सीट को छीनकर वहां कांग्रेस पार्टी का झंडा बुलंद करने में अहम भूमिका निभाई।
अरूण यादव का इस सीट से दावेदार होना निश्चित तौर पर दो प्रमुख बातो की ओर इशारा करता है। पहला तो अरुण यादव का गृह जिला नजदीकी खरगोन है और खंडवा से एक बार सांसद रहने के कारण उनका दावा ज्यादा मजबूत है। दूसरा इससे पहले अरूण यादव नंद कुमार चौहान को लोकसभा चुनावों में कड़ी टक्कर दे चुके है। इसलिए कांग्रेस पार्टी उनके नाम पर सहमति दे सकती है। यही वजह है कि सीट पर अपने नाम की सहमति मिलने से पहले ही अरुण यादव की टीम खंडवा में सक्रिय हो गई है। यादव ने भी इस क्षेत्र में आवाजाही बढ़ा दी है।
इतना ही नहीं भाजपा नेत्री चिटनीस भी क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में बुरहानपुर से हारने के बाद भी सामाजिक और राजनीतिक कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी बनी रही। इंटरनेट मीडिया पर उनकी टीम उनके आयोजनों को लेकर मुस्तैद रही है। पिछले अनुभव के आधार पर उनकी दावेदारी भी मजबूत है। अगर भाजपा को खंडवा लोकसभा सीट को जीतना है तो उन्हें इस बार अपनी रणनीति में बदलाव लाना ही होगा, क्योंकि यदि वह पुरानी रणनीति से चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरी तो निश्चित है कि उन्हें कड़ी टक्कर मिलेगी।
अरूण यादव को टिकट देने का इशारा करना कमलनाथ का मास्टर स्ट्रोक हो सकता है
जहां भाजपा अभी चुनावी फिल्ड में नही है अभी उनकी सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया के आसपास लगी हुई है वहां कांग्रेस की चुनावी तैयारियां प्रारंभ हो गई है। लेकिन जीत जिस किसी की भी हो, चुनाव जीतने के रास्ता आसान नहीं होगा।
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