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हीरे ज्यादा कीमती हैं या पेड़, मध्यप्रदेश के छतरपुर में 2,15,875 पेड़ों को काटने की तैयारी चल रही है।

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खबर के लिए संपर्क करें संपादक अभिषेक शर्मा 7974711101

मध्य प्रदेश का छतरपुर जिला बुंदेलखंड क्षेत्र में आता है, जहां भूमिगत पानी का भयानक संकट है, लेकिन इस जिले में एक प्राकृतिक जंगल पाया जाता है, जिसे बक्सवाहा क्षेत्र कहा जाता है। यह जंगल 364 एकड़ की जमीन में फैला हुआ है, यहां कुल 2,15,875 पेड़ हैं। यह जंगल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 225 किलोमीटर दूर है। पिछले कुछ वर्षों से इस जंगल में एक सर्वे चल रहा था जिसमें ये बात पता चली कि इस जंगल में हीरे का सबसे बड़ा भंडार छुपा हुआ है। अनुमान है कि जंगल की जमीन में तीन करोड़ 40 लाख कैरेट हीरे दबे हो सकते हैं, इसके लिए कंपनी को नीलामी में जंगल की जमीन लीज पर दी जा चुकी है और इस जमीन पर हीरे की खदानों के लिए पेड़ों को काटा जाना है।

अब सवाल यह है कि

हीरे ज्यादा कीमती हैं या पेड़? इन पेड़ों को बचाने के लिए आसपास के लोगों ने संघर्ष शुरू कर दिया है, लोग चिपको आंदोलन की तर्ज पर यहां पेड़ों से चिपक कर इन्हें बचाने का संकल्प ले रहे हैं और जंगल में पेड़ों पर रक्षा सूत्र भी बांधे जा रहे हैं। इन लोगों का मानना है कि हीरों के लिए जंगल को नष्ट करना सही नहीं होगा और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। बक्सवाहा का यह जंगल लगभग 382 हेक्टेयर से ज्यादा इलाके में फैला है। सरकार ने इस जंगल की जमीन पर हीरा खनन की मंजूरी दी है। इसके बाद अब इस इलाके में पेड़ों को काटने की प्रक्रिया शुरू होनी है। इस बात से आसपास के लोग बहुत नाराज हैं और इसलिए लोग विरोध में जंगल में पहुंचकर पेड़ों को बचाने के प्रयास में लगे हैं।

इस जंगल का घनत्व 0.7 है, जिसके कारण यहां सूर्य की किरणें केवल 3 या 4 भाग में ही पड़ती हैं और बाकी का भाग ढका रहता है, जिसके कारण धरती का जलस्तर एक समान बना रहता है और यह जंगल कटने से जलस्तर भी प्रभावित होगा। इस जंगल की खासियत यह है, कि यहां सैकड़ों साल पुराने और दुर्लभ प्रजाति के पेड़ पाए जाते हैं। एक रिपोर्ट का अनुमान है कि इस जंगल में सागौन के 40 हजार पेड़ पाए जाते हैं। इसके अलावा केम, पीपल, तेंदू, जामुन, बहेड़ा और अर्जुन जैसे बहुत से औषधीय पेड़ भी यहां मौजूद हैं, ऐसे में इन पेड़ों की कटाई से किसानों को भी नुकसान होगा और आसपास रहने वाले लोगों की जीविका पर भी इसका असर पड़ेगा।    

 हालांकि इस खबर का व्यवसायिक पहलू यह है कि जैसे ही हीरे की खदानें स्थापित होंगी, ये खदानें पूरे एशिया की सबसे बड़ी हीरे की खदानें बन जाएंगी। अभी भारत में हीरे की खदानें आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में हैं, अधिकतर हीरे की खदानें मध्यप्रदेश में ही पाई जाती हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार इस माइनिंग प्रोजेक्ट के लिए प्रतिदिन 59 लाख क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता होगी और इसके लिए पास में मौजूद बरसाती नाले की दिशा बदली जाएगी और इसका पानी इस्तेमाल किया जाएगा। भारत सरकार की सेंट्रल ग्राउंड वॉटर अथॉरिटी का मानना है कि मध्य प्रदेश का छतरपुर जिला पानी के गंभीर संकट से जूझ रहा है इसे देखते हुए इस जिले को सेमी क्रिटिकल की श्रेणी में रखा गया है।

इस श्रेणी में वो जिले होते हैं,

जहां पानी की समस्या अधिक होती है, यानी पानी के संकट से जूझते छतरपुर में इस जंगल को खत्म करना सही नहीं होगा। इसी साल 29 अप्रैल को मध्यप्रदेश के रायसेन में एक किसान ने सागौन के दो पेड़ काट दिए थे, जब यह सूचना वन विभाग को मिली तो उसने किसान पर कार्यवाही की और दो पेड़ काटने के लिए एक करोड़ बीस लाख रुपए का जुर्माना उस किसान पर लगाया, तब वन विभाग का यह कहना था कि सागौन के एक पेड़ की उम्र 50 वर्ष होती है और इस उम्र में वो 60 लाख रुपए का फायदा करता है।

अब सवाल यह है कि इस जंगल में सागौन के 40 हजार पेड़ काटे जाएंगे, तो क्या इन पेड़ों को काटने के लिए विभाग प्रति पेड़ 60 लाख रुपए के हिसाब से 24 हजार करोड़ रुपए का जुर्माना भरेगा? हमारे देश में वृक्षों को लेकर इस तरह के कई दोहरे मापदंड हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है।         भारत में लगभग 6.5 लाख गांव हैं, जिनमें से लगभग 1.70 लाख गांव जंगल के किनारे बसे हैं, यानी गांव के करोड़ों लोगों की आजीविका इन्हीं जंगलों पर निर्भर करती है जैसे लकड़ी इंधन चारा औषधियां और फल इत्यादि जंगल से ही मिलते हैं लेकिन छतरपुर में जिन 2 लाख 15 हजार पेड़ों पर काटे जाने का खतरा मंडरा रहा है, वह बहुत ही खतरनाक है।

वैज्ञानिकों के अनुसार हरे-भरे जंगल हमारी पृथ्वी के फेफड़े हैं, इनसे हमें ऑक्सीजन प्राप्त होती है और ऑक्सीजन की जरूरत को हमने कोरोना संक्रमण में सबसे ज्यादा महसूस किया है, इन परिस्थितियों में निर्जीव हीरे के लिए सजीव पेड़ों को शहीद करना कहां तक ठीक होगा? प्राकृतिक रूप से बने जंगल को हटाने के बाद, यदि वृक्षारोपण का वायदा भी किया जाए तो ऐसा जंगल खड़ा होने में कई साल लग जाएंगे, इसीलिए आस-पास के गांव वाले ही नहीं, आसपास के जिलों के लोग भी यहां पहुंचकर पोस्टर-बैनर लेकर पेड़ों को बचाने में जुटे हैं। एक जमाने में उत्तराखंड में जंगलों को बचाने के लिए चिपको मूवमेंट की शुरुआत हुई थी और आज बक्सवाहा के जंगलों में तमाम संगठन विरोध में उतर आए हैं।     

  यदि पेड़ और हीरे में से एक को चुनने को कहा जाए तो कोई भी समझदार व्यक्ति हीरा नहीं बल्कि पेड़ ही चुनेगा, क्योंकि पेड़ हमारे जीवन दायक हैं, ऑक्सीजन देने वाले हैं, हजारों गरीब और आदिवासियों को पेड़ और जंगल रोजगार देते हैं। हम लगभग पिछले डेढ़ दो वर्षों से कोरोना की मार झेल रहे हैं और हमने लगातार प्रकृति का भयावह रूप देखा है, इसलिए चाहिए कि हम प्रकृति का सदैव संरक्षण करें। हीरे से अधिक प्रकृति मूल्यवान है। पेड़-पौधे, जंगल, पहाड़, नदियां, तालाब  आदि का संरक्षण और साफ-सुथरा रखना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।   

   एक पेड़ प्रतिदिन चार लोगों को मिलने वाली ऑक्सीजन वातावरण में छोड़ता है। एक एकड़ जमीन पर लगे पेड़ 5 टन कार्बन डाइऑक्साइड सोखने की क्षमता रखते हैं। पेड़ हमें गर्मी से भी बचाते हैं, एक पेड़ 1 से 3 डिग्री सेल्सियस तक तापमान कम रखता है। पेड़ हमें बाढ़ से भी बचाते हैं, ये बारिश का काफी पानी सोख लेते हैं, जिससे ये पानी नदियों में नहीं जाता है। पेड़ तूफानों को भी कमजोर करते हैं, पेड़ों की वजह से तूफानी हवाएं धीमी पड़ जाती हैं। पेड़ों से किसी प्रॉपर्टी की कीमत भी बढ़ जाती है, एक स्टडी के मुताबिक जो घर हरे-भरे पेड़ों के पास होते हैं, उनकी कीमत ज्यादा होती है। औषधीय पेड़ बीमारी के उपचार में वरदान साबित होते हैं। आयुर्वेद में पेड़ों को मेडिसिन माना गया है, किंतु हमने समय के साथ-साथ पेड़ों के इन अमूल्य योगदानों को भुला दिया है और इनके आगे हमें हीरे की चमक ज्यादा आकर्षित करती है।   

    5 मई को पर्यावरण दिवस पर बहुत से राजनेताओं ने पौधे लगाते हुए अपने फोटो खिंचवाए, लेकिन पर्यावरण के प्रति संवेदना की गवाही कुछ दिनों बाद बक्सवाहा के जंगल देंगे, जब ये सपाट मैदान बन चुके होंगे। हमेशा से विकास के नाम पर जंगलों को काटा जाता रहा है और यह दलील दी जाती रही है कि आपको विकास चाहिए तो जंगलों की बलि देनी होगी।

अब सवाल यह है कि क्या हीरा खनन को भी विकास की परिभाषा के दायरे में रखना सही होगा?         

आज से 15 सौ वर्ष पूर्व लेटिन अमेरिका के पेरू देश की नाज़का सभ्यता अपने सैकड़ों वर्षो के इतिहास के बाद अचानक गायब हो गई थी‌। ब्रिटेन के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के अध्ययन के मुताबिक इस सभ्यता ने अपने जंगल को काटकर कपास और मक्के की खेती शुरू कर दी थी, जिसकी वजह से वहां के रेगिस्तानी इलाकों का इकोसिस्टम नष्ट हो गया, इसी कारण वहां बाढ़ आई और सभ्यता पूरी तरह नष्ट हो गई। जंगल को काटना इस सभ्यता को बहुत महंगा साबित हुआ, लेकिन आज लोग इस बात को नहीं समझ रहे हैं और वे वही गलती कर रहे हैं जो नाज़का सभ्यता के दौरान हुई थी।

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