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जिले मे आबकारी अधिकारी कि दोहरी चारित्र्य कमजोरो पर अपने पद का दुरुपयोग

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नीलेश द्विवेदी उप सम्पादक, 7999752627
शहडोल। जिले मेंं नकली मिलावटी शराब का अवैध कारोबार जोरों पर जारी है। यूं कहने को तो आबकारी अधीक्षक सुरेश कुमार राजौरे की टीम कथित तौर पर शराब के अवैध कारोबार को रोकने का प्रयास कर ही रही है लेकिन वास्तविकता यह है कि आबकारी विभाग सिर्फ गरीब आदिवासियों जो हाथभट्ठी शराब बनाते है, पर कार्यवाही तक ही सीमित है।

अंग्रेजी और देशी मदिरा का ठेका लेने वाले बड़े कारोबारियों पर कार्यवाही के नाम से ही विभाग के मुखिया और उनके मातहतों को सांप सूंघ जाता है। यदा-कदा जो कार्यवाही होती है वह भी पुलिस टीम द्वारा विभाग को दी गई सौगात ही मानी जा सकती है। यह कहना गलत नहीं होगा कि शहडोल जिले का आबकारी विभाग पुलिस के रहमों करम पर जिंदा है और वास्तव में नहीं चाहता कि जिले में अवैध शराब बंद हो क्योंकि अवैध कारोबार बंद होने से निजी आय पर विपरीत असर पड़ना स्वाभाविक है। 


आबकारी अधिनियम की धारा 34 और 36 शराब के अवैध कारोबारियों के लिए अभयदान से कम नहीं है। इस धारा में मामला दर्ज होने पर आरोपियों को थाने से ही जमानत मिल जाती है। जबकि, ऐसे मामलों में आईपीसी की धारा 272 का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसमें सजा के कड़े प्रावधान हैं। बावजूद, यह नहीं लगाई जाती है, जिससे अवैध शराब का कारोबार जमकर फलफूल रहा है।

आबकारी विभाग एवं पुलिस द्वारा चालू वित्तीय वर्ष में अब तक जिले में अवैध शराब के कारोबार में लिप्त सैकड़ों लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। बावजूद, शराब का अवैध कारोबार धड़ल्ले से जारी है। जगह-जगह खुलेआम कच्ची शराब की बिक्री हो रही है और इसे बनाने के लिए भट्टियां भी खूब धधक रही हैं।

लायसेंस वाले में भी न्यूसेंस

 लाइसेंसी मदिरा भी व्यापक पैमाने पर मिलावट की चपेट में है। पिछले सप्ताह ही पुलिस अधीक्षक अवधेश गोस्वामी के निर्देशन में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक मुकेश वैश्य के नेतृत्व में पलिस टीम द्वारा छापामारी की गई जिसमें नकली पैकिंग का सामान बरामद किया गया है, इसके पूर्व कई बार बाहर से लाकर बेची जाने वालीे मिलावटी शराब पकड़ी जा चुकी है। यह कारोबार जिले में अब भी खूब फलफूल रहा है। इसकी मुख्य वजह आबकारी विभाग की कार्यप्रणाली बनी हुई है। 

रटा-रटाया प्रकरण पर कुछ लोगो पर दिखावा

इक्का-दुक्का मामलों को छोड़ बाकी सभी में अवैध शराब कारोबारियों के खिलाफ आबकारी अधिनियम की धारा 34 एवं 36 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है। इसमें से ज्यादातर आरोपियों को थाने से ही मुचलके पर छोड़ दिया जाता है। बाहर निकल कर एक बार फिर वह अपने काम को अंजाम देने में जुट जाते हैं। 

सख्त कार्यवाही से परहेज

शराब में खतरनाक अपमिश्रण पाए जाने पर आईपीसी की धारा 272 का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसमें आजीवन कारावास तक का प्रावधान है। इस धारा के तहत मिलावट को संज्ञेय व अजमानतीय अपराधों में रखा गया है। इसका विचारण सत्र न्यायालय में ही किया जा सकता है। लेकिन, यह धारा शराब के अवैध कारोबारियों पर नहीं लगाई जाती। आबकारी विभाग इससे बचता है, जिससे अवैध शराब के कारोबारियों के हौसले बुलंद हैं।       

लाइसेंसी दुकानों पर मिलावटी शराब

लाइसेंसी दुकानों पर मिलावटी शराब की बिक्री धड़ल्ले से जारी है, परंतु दुकानों की जांच की जहमत नहीं उठाई जाती। पिछले दिनों बुढार रोड की मदिरा दुकान में नकली शराब को असली बनाने का सामान पकडे  जाने के बाद मजबूरी में आबकारी विभाग ने कुछ दुकानों की जांच की थी, जिनमें दो दुकानों पर मिलावटी शराब की बोतल पकड़ी भी गई थीं। लेकिन उसके बाद एक भी दुकान पर छापामारी नहीं की गई और मामला ठंडे बस्ते में चला गया। 

नकली के साथ ओवररेटिंग की भी मार 

शराब के शौकीनों पर मिलावट के साथ-साथ ओवररेटिंग की भी दोहरी मार पड़ रही है। खासतौर पर ज्यादा बिकने वाले ब्रांड रॉयल चैलेंज, ब्लेंडर प्राइड, रॉयल स्टेग की बोतल पर अधिक रुपये वसूल किए जा रहे हैं। इसी तरह क्वार्टर पर भी अधिक रुपये वसूले जा रहे हैं। वहीं, बीयर की प्रति बोतल /केन पर बीस रुपये तक की ओवररेटिंग हो रही है। 

सबको पता है, सबको खबर 


चाहे असली दुकानों पर नकली, मिलावटी और सीमावर्ती प्रांतों की शराब बिकने का मामला हो, चाहे सड़क के किनारे लहंगा और गुलाबो नाम से बिकने का, ऐसा नहीं नीचे से लेकर ऊपर तक के पुलिस व प्रशासन के अधिकारियों तक को पता नहीं, या दिखता नहीं। लेकिन बैदस्तूर यह गोरखधंधा जारी है।

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