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करोना संक्रमण, आत्म संयम, आत्मशक्ति एवं उच्च मनोबल इसका श्रेष्ठ उपचार।

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By: संजीव ठाकुर 

Apna Lakshya News
करोना का यह संक्रमण एक भयानक विपदा बनकर आम जनमानस को भयभीत किए हुए हैं। कितनों ने अपने सगे रिश्तेदारों, नजदीकी मित्रों बंधुओं को इस संक्रमण काल में खो दिया है। यह ऐसा भीषण संक्रमण है की पुत्र, पिता के साथ पुत्री,माता के साथ भाई,भाई के साथ संकटकाल में इसके विरुद्ध संघर्ष करने में साथ नहीं दे पा रहा है। यह कहावत एकदम सही चरितार्थ हो रही है कि “मनुष्य अकेला आया है

अकेला जाएगा”,पर विश्व के किसी भी वैज्ञानिक या शोधकर्ता ने यह कल्पना नहीं की होगी कि इस तरह का कोई वायरस संपूर्ण मानवता को संकट में डाल उनके प्राण हर लेगा। इस संक्रमण में मानव जगत में हाहाकार मच गया है, दवाई की कमी, बिस्तर की कमी, अस्पताल की कमी, ऑक्सीजन की कमी, इंजेक्शन की कमीऔर उसके बाद मानवीय संवेदनाओं की कमी ने मनुष्य को तोड़ कर रख दिया है। मानव की संवेदना इस संघर्ष के समय में एक दूसरे से बहुत दूर और दूर होती जाती दिखाई दे रही है।

भारत देश संस्कृति और संस्कार से लबालब देश रहा है, जहां सिर्फ भाईचारे के दम पर ही बड़े-बड़े संकटों को झेल कर मानवता विजई रही है। पर इस खतरनाक करोना संक्रमण के काल में मानवीय संवेदनाओं को भी मनुष्य से दूर कर दिया है। न जाने कितने घरों के चिराग न जाने कितने घरों की अन्नपूर्णाओं को एवं न जाने कितने घरों के कमाऊ पूतो को इस संक्रमण ने कॉल कवलित कर दिया है। इस संक्रमण से बचने के लिए शासन, प्रशासन, निजी संगठन, समाजसेवी संस्थाएं लगातार संघर्ष कर रही हैं और मनुष्यता तथा मनुष्य को बचाने के प्रयास में इंसान धीरे-धीरे काल के गाल में समाते जा रहा है।

इस संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना, बार बार साबुन से हाथ धोना, भीड़ से बच के रहना एवं नाना प्रकार की आयुर्वेदिक तथा एलोपैथी की औषधियों को उसके पश्चात भी मानव जीवन की रक्षा नहीं हो पा रही है। ऐसे में ऋषि मुनि कह गए हैं कि आत्म बल, आत्म संयम, आत्मशक्ति, मनोबल एवं स्वयं पर विश्वास अद्भुत औषधि का कार्य करती है। संस्कारिक रूप से मजबूत भारत की जनता का ईश्वर पर विश्वास एक ऐसी शक्ति है, जिससे तमाम औषधि लेने के बाद और कॅरोना संक्रमण से बचने के दिशा निर्देशों का पालन करने के पश्चात मनुष्य जीवन बचाने के लिए एक अमोघ अस्त्र की तरह इस्तेमाल की जा सकती है।

यह सर्वविदित है कि करोना संक्रमण एकांतवास के कारण बुजुर्गों महिला पुरुष दोनों, नौजवानों मे मानसिक शारीरिक विसंगतियां पैदा होने लगी हैं, एकांतवास के कारण बुजुर्ग लोग मानसिक प्रताड़ना के शिकार हो चुके हैं। एवं छोटी मोटी बीमारी से ही वह मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। ऐसे में परिवार जनों को एकजुट रहकर एक दूसरे के सुख दुख को बांट कर आत्म संयम, आत्मबल तथा आत्मशक्ति बनाए रखना होगा,इस विपरीत घड़ी में एक दूसरे का साथ देना चाहिए, अच्छा समय तो जल्दी गुजर जाता है,यह संकट का समय भी आप सब के मनोबल, आत्मशक्ति से आसानी से गुजर जाएगा, यह विश्वास आप अपने मन में बनाए रखें, अभी तिमिर है तो कल सूर्य की उजास किरणें भी आपको नए युग की तरफ ले जाएंगे,आज यदि उपवन मुरझाए हुए हैं, तो कल कलियो, फूलों से यही बाग बगीचे आपको मुस्कुराहट तथा खिलखिला देने को तैयार होंगे।

इसलिए मन में निराशा की कोई जगह न रखें, सदैव मुस्कुराने का प्रयास करे। और ईश्वर जैसी शक्ति पर विश्वास कर ईश्वर का भजन, चिंतन जरूर करें, और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योगाभ्यास तथा घर पर रहकर सरल व्यायाम, मेडिटेशन करके आने वाले कल का स्वागत करें,यह तो मानना ही होगा कि जिंदगानी में निराशा की कोई जगह नहीं है। क्योंकि आशाओं पर आकाश टिका हुआ है। और कल की मुस्कुराहट और खुशियां इसी आकाश से बरसेगी और अनेक उपवन में नई कलियां प्रस्फुटित होंगी। नया जीवन फिर मुस्कुराएगा, खिल खिलाएगा।

वैश्विक स्तर पर हमने यह जंग 70% तक जीत ली है वैक्सीन के रूप में जीवनदायिनी दवाई हमें मिल रही है। वैक्सीन अवश्य लगवाएं एवं जीवन की रक्षा सुनिश्चित करें। वैक्सीन लगाने के बाद भी आप दिशानिर्देशों का पूर्ण रुप से पालन करें, क्योंकि वैक्सीन रामबाण दवा नहीं है, अब हमें भविष्य में करोना जैसे संक्रमण की आदत डालकर ऐसे ही जीवन की रूपरेखा तैयार कर संक्रमण से बचने दिशा निर्देशों का पालन करना होगा।

बुजुर्ग अपने बच्चों से दोस्ताना व्यवहार कर उन्हें उनसे बात करें उनकी समस्या सुने,और उनकी जिंदगी में कोई दखलंदाजी ना कर जी भर के मुस्कुराए और खिलखिलाएं। क्योंकि करोना कॉल को यदि छोड़ दिया जाए, तो ऐसी खुशनुमा जिंदगी ना मिलेगी दोबारा। फिर नया युग आएगा, नया सवेरा होगा, हम फिर मुस्कुराएंगे और नए जीवन में प्रवेश करेंगे।इसलिए निराशा का साथ छोड़े आत्म संयम, आत्मबल, स्वयं विवेक के साथ संक्रमण काल का मुकाबला करें।

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