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करोना के हवा में फैलने वाले वायरस पर रिसर्च।

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By :संजीव ठाकुर

Apna Lakshya News
अमेरिका,ब्रिटेन,कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने शोध करके पता लगाने की कोशिश की है कि करोना कहीं हवा में फैलने वाला वायरस तो नहीं?वैज्ञानिक,मेडिकल संस्था की पत्रिका लेसेंट ने दावा किया है कि करोना यानी कोविड-19 के वायरस हवा में फैल रहे हैं।

हवा में फैलने वाले वायरस को देखना एवं पता लगाना एक कष्ट साध्य वैज्ञानिक खोज है, एवं हवा में फैलने वाले वायरस को स्पष्ट रूप से भी देख पाना बहुत कठिन है, ब्रिटेन की एक अन्य शोध संस्था द्वारा यह भी बताया गया है की covid-19 के वायरस हवा में फैल रहे हैं और यही कारण है कि अनथक प्रयास करने के बाद भी कोविड-19 जैसी संक्रमण वाली बीमारी पर नियंत्रण नहीं किया जा सका है।

यदि वैज्ञानिकों का एवं रिसर्च इंस्टिट्यूट का दावा सच है कि कोविड-19 का वायरस हवा में फैलता है, तो भारत एवं अन्य देश जिसकी जनसंख्या बहुत ज्यादा है को मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि यदि कोई व्यक्ति छिकता खासता या सांस छोड़ता है, तो दूसरे व्यक्ति या समूह को संक्रमण फैलने में देर नहीं लगेगी, ऐसे में फिर इस का इलाज करना एक दुरुह कार्य होगा और बड़ी संख्या में आमजन के संक्रमित होने की संभावना है।


भारतीय समाज और देश के मठाधीशों ने आम सभा
तथा चुनाव की रैलीयां आयोजित कर करोना से बचाव के दिशा निर्देशों कि जिस तरह धज्जियां उड़ाई हैं, वह भारत की 121 करोड़ जनता के सामने क्या उदाहरण पेश कर पाएंगे। करेला ऊपर से नीम चढ़ा खुले आम मंच से बिना मास्क लगाए आम जनता से निर्देश नुमा अपील करते हैं कि समाजिक दूरी बनाए रखें, घर से बाहर ना निकले, भीड़ में ना जाए, और हर आधा, एक घंटे में हाथ धोएं ।तो बताइए जनाब झुग्गी झोपड़ी में जहां पानी सुबह एक घंटा और शाम को आधा घंटा नल के ठिके पर आता है, वहां पूरे मोहल्ले के लोग पानी भरने के लिए धक्का-मुक्की करते हैं, ऐसे में क्या सामाजिक दूरी बनाई जा सकती है, जहां पानी के पीने की सुविधा तक ना हो वहां क्या बार-बार साबुन से हाथ धोया जा सकता है।

ऐसे में सरकार जवाब देह नहीं है।आम सभा,चुनावी रैलियों में पैसा देकर जनता को घर से बुलाकर एक दूसरे से धक्का-मुक्की करने के लिए आमंत्रित करते हैं, तब इन्हें समझ में नहीं आता कि करोना बड़ा खतरनाक और जानलेवा रोग है, और इसे सामाजिक दूरी से ही दूर किया जा सकता है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, मद्रास में झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले मजदूर जब एक कमरे में पांच छह लोग एक साथ सोने को मजबूर होते हैं, ऐसे में इतनी मजबूरी में सोशल डिस्टेंसिंग का कैसे पालन किया जा सकता है।

ऐसे में सरकार कितनी जवाब देंह है। कस्बे में स्थित अस्पताल से बीस से तीस किलोमीटर दूर जंगल के गांव में कोई करोना से अगर संक्रमित हो जाय, तो वह प्राथमिक उपचार के लिए भी तरस कर, कस्बे के अस्पताल में इलाज के लिए नहीं आ सकता। ऐसे में क्या सरकार जवाब देह नहीं है। दीहारी मजदूर, खोमचे वाले,और रोज कमा कर खाने वाले लोग यदि एक दिन काम पर न जाए तो वह दूसरे दिन खाने के लिए तरस जाते हैं।

ऐसे में सरकार कितनी जवाब देह है। और केरल, तमिलनाडु, आसाम, पश्चिम बंगाल, पुदुचेरी में यही सत्ता के शीर्ष के और विपक्ष के राजनीतिज्ञों को जब रैली और आम सभाओं को संबोधित करना रहता है, तब ना तो वहां करोना होता है,ना गरीबों की बीमारी तथा मौत दिखाई देती है। सत्ता के मद में चूर यह आधुनिक दृष्टिहीन लोग समाज देश और दुनिया के लिए कितने जिम्मेदार हैं। क्या चुनाव में कॅरोना संक्रमण को विशेष छूट मिली हुई है,कि करोना चुनावी रैलियों और आम सभा में किसी को संक्रमित नहीं करेगा। क्या कारोना के इस भयावह संक्रमण में मैं ही चुनाव करवाए जाने थे, संविधान तो चुने हुए लोग ही बनाते हैं। फिर नया कानून बनाकर विशेष परिस्थिति में जब इतनी भयानक महामारी देश में फैली है, तो चुनाव विशेष प्रावधानों के चलते आगे भी बढ़ाए जा सकते थे। क्या चुनाव आम सभा सदर रैलियां आम लोगों के मृत्यु से बढ़कर हैं।

चुनाव की इन रैलियों मैं जिस कदर करोना के दिशा निर्देशों का माखौल उड़ा कर उसकी धज्जियां बढ़ाई गई हैं। परिणाम स्वरूप एक करोना के विस्फोट की आशंका नहीं होगी,जरूर होगी और उसके परिणाम भी बहुत जल्द सामने आएंगे जब आप पाएंगे की चुनाव की आम सभा तथा रैलियों में गए लोग बड़ी संख्या में संक्रमित पाए जाएंगे।जहां विदेशों में एक एक व्यक्ति के जीवन के लिए वहां की सरकार पूरा जोर लगा देती है, वहीं भारत में देश के तथाकथित कर्णधार चुनावी सभा तथा रैलियों में करोना संक्रमण को हाथों हाथ बांट रहे हैं। आज से ठीक एक वर्ष पहले पलायन किए गए मजदूरों की जो हालत हमारे सामने आई थी, वह किसी दर्दनाक हादसे से कम नहीं थी, फिर भी सरकार ने कोई सबक न लेकर पलायन करते मजदूरों का दर्द को अनदेखा कर, ठोस उपाय या समाधान निकालने की कोशिश ही नहीं की।

जहां पीने के लिए साफ पानी उपलब्ध नहीं है, वहां आप कैसे उम्मीद करेंगे कि हर व्यक्ति हर आधे घंटे में साफ पानी से हाथ धोकर करोना संक्रमण से अपने को बचाए, जिन मजदूरों के पास खाने के लिए दाल चावल नहीं है, उससे कैसे उम्मीद करते हैं की मुफ्त के सरकारी खस्ताहाल हॉस्पिटल के अलावा महंगे अस्पतालों में अपना इलाज करा पाए, कई प्रश्न अत्यंत विचार योग्य हैं,उनमें से एक वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार, और आप पर्याप्त संख्या में उपलब्धता, जबसे वैक्सीन का अविष्कार हुआ है देश में अब तक एक से डेढ़ करोड़ आबादी को यह वैक्सीन लग पाई होगी और वैक्सीन का स्टॉक खत्म होने को आ गया है। दवाई की फैक्ट्रियों की उत्पादन क्षमता इतनी नहीं है कि भारत की 121 करोड़ आबादी को निर्धारित समय पर वैक्सीन लगाकर कॅरोना की मार से बचाया जा सके। इसके विपरीत भारत देश अंतरराष्ट्रीय समझौतों के तहत विदेशों में भी वैक्सीन भेज रहा है।

जब जब घर में नहीं है दाने तो अम्मा क्यों चली है भुनाने, जब देश की ही बड़ी तादात वैक्सीन वहीं है तो दूसरे देशों को वैक्सीन दिए जाने का हिमायती था। ले दे करअब जाकर वैक्सीन के निर्यात पर रोक लगाई गई है। और जोर शोर से यह अपील की जा रही है की वैक्सीन लगवाना ही एकमात्र विकल्प है, जब आपके पास इतनी बड़ी संख्या में वैक्सीन ही नहीं है तो अपनी जनता को आप क्या वैक्सीन मुहैया करा पाएंगे और करोना के संक्रमण से इतनी बड़ी जनसंख्या को बचा पाएंगे।

पिछले 1 वर्षों से जब करो ना लगातार आमजन को संक्रमित कर रहा है तो इसे अतिवृष्टि तथा अनावृष्टि, यानी बाढ़ और सूखे की तरह आपदा घोषित कर इसके लिए आम बजट में अलग से वित्तीय व्यवस्था होनी चाहिए थी। वैज्ञानिकों के अनुसार यह तो तय है की करोना कभी खत्म नहीं होगा, और यह समय के अंतराल में प्रगट होता रहेगा, अतः सरकार को इसे भी आपदा प्रबंधन के दायरे में रख दूरगामी योजना बनाकर इससे बचने के स्वास्थ्यगत उपाय करने होंगे। वरना देश की आबादी में त्राहिमाम मचने लगेगा।

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